मेहनत से हुई शीश महल जब ये झोपड़ी, पत्थर उछालता है कोई इंतक़ाम से... मेहनत से हुई शीश महल जब ये झोपड़ी, पत्थर उछालता है कोई इंतक़ाम से...
झिलमिलाता गौहर ना सही पर स्वयं की शोहरत को कभी कम भी नहीं आंकती हूँ। झिलमिलाता गौहर ना सही पर स्वयं की शोहरत को कभी कम भी नहीं आंकती हूँ।