अकूत खज़ाना
अकूत खज़ाना
भोला भोली करने चले जंगल की सैर
भटके दोनों रास्ता अटक गया गड्ढे में पैर,
इससे पहले एक दूसरे की मदद वो कर पाते
बेचारे दोनों उस गड्ढे में नीचे फिसलते हुए जाते,
संभल ना पाए किसी सहारे के बगैर...
आखिर संकरे रास्तेसे पहुंचे पाया अकूत खजाने का ढेर,
भोला भोली हुए बड़े अचंभित…
देखकर धन दौलत होने लगे लालायित,
इतने में किसी ने कडककर उन्हें आवाज़ लगाई
डर के मारे भोला भोली की निकली रुलाई,
हिम्मत करके दोनों में पलटकर जो देखा
काठ के मुखोटे से निकला कोई बुज़ुर्ग सरीखा,
उसने गुस्से में आगबबूला हो आँखें दिखाई
भोला भोली दोनों ने सरपट दौड़ लगाई,
गिरते पड़ते निकल भागे मिलते ही गुफा का द्वार
अबना अकेले घूमेंगे, मिलकर दोनों ने कसम खाई।