अकड़
अकड़
दिखाता है अकड़ वो ख़ूब ही मुझको अमीरी की!
वही उड़ता मजाक मेरी बहुत यारों ग़रीबी की
मगर फ़िर भी नहीं तक़दीर बदली बदनसीबी से
इबादत की बहुत ही रोज़ मैंने तो इलाही की
ख़ुशी के पल नहीं है जिंदगी में ही भरे मेरी
यहां तो कट रही है जिंदगी मेरी उदासी की
सूखा है तन मुहब्बत की तन्हाई से कभी तक है
हुई बारिश नहीं है यारों मौसम ए गुलाबी की
उसे कर आया हूँ इंकार दिल से ही दोस्ती उसकी
नहीं की दोस्ती मैंने क़बूल है उस शराबी की
कर दूंगा दुश्मनों का सर कलम मैं देश के सब
उठायी हाथों में तलवार मैंने तो दुधारी की
कहां इंसानियत अब रह गयी आज़म दिलों में है
लड़ायी है यहां तो दौलत की ए यार चाबी की
