STORYMIRROR

निशा परमार

Abstract Fantasy

3  

निशा परमार

Abstract Fantasy

ह्रदय की कंचन मृदा में

ह्रदय की कंचन मृदा में

1 min
12.1K

उगती है अधरों की कलियाँ

मेरे ह्रदय की कंचन मृदा में,


मोहती है धड़कनों को मन में

विचरण करती मृग नयनियाँ,

जीवन के आघातों से टूटती है

सूखी ख्वाहिशों की टहनियाँ,

अस्रू बोती स्वपनों की कलियां

देख विरह की रोती बेचैनियाँ,

हसरते कुंदन बन के गढ़ गई

श्रृंगार की अमूल्य विदा में,


उगती है अधरों की कलियाँ

मेरे ह्रदय की कंचन मृदा में


तारों की रंगीन टोली गुनगुनाती

मधुर मनमोहक गीत को,

अरमानों की रानियां थिरकती

बाँध पाँव में पायलिया,

चाँद की चाँदनी पिघलती

बजती बयार की बांसुरिया,

बादलों के नयनों में बसती

उजियारे समां की रोशनिया,

रागिनी बलखाती मोरनी बन

खूबसूरत सी चंचल अदा में,


उगती है अधरों की कलियाँ

मेरे ह्रदय की कंचन मृदा में।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract