ह्रदय की कंचन मृदा में
ह्रदय की कंचन मृदा में
उगती है अधरों की कलियाँ
मेरे ह्रदय की कंचन मृदा में,
मोहती है धड़कनों को मन में
विचरण करती मृग नयनियाँ,
जीवन के आघातों से टूटती है
सूखी ख्वाहिशों की टहनियाँ,
अस्रू बोती स्वपनों की कलियां
देख विरह की रोती बेचैनियाँ,
हसरते कुंदन बन के गढ़ गई
श्रृंगार की अमूल्य विदा में,
उगती है अधरों की कलियाँ
मेरे ह्रदय की कंचन मृदा में
तारों की रंगीन टोली गुनगुनाती
मधुर मनमोहक गीत को,
अरमानों की रानियां थिरकती
बाँध पाँव में पायलिया,
चाँद की चाँदनी पिघलती
बजती बयार की बांसुरिया,
बादलों के नयनों में बसती
उजियारे समां की रोशनिया,
रागिनी बलखाती मोरनी बन
खूबसूरत सी चंचल अदा में,
उगती है अधरों की कलियाँ
मेरे ह्रदय की कंचन मृदा में।
