इश्क़वाला चाँद
इश्क़वाला चाँद
कल रात चाँद फिसल कर,
नदी में आ गिरा।
मैंने हौले से उसे उठाया,
थपथपाया और प्यार से सुखाया।
अंक से मेरे लग के,
वो हौले से मुस्काया।
और बोला.....
कब से नज़र थी तुमपे,
सानिध्य आज मैं पाया।
कल पाख बदलने वाला था,
अंधियारा आने वाला था।
मैं कैसे रहता तुम बिन,
प्रतिक्षण तड़पता निशदिन,
सो नदी किनारे आया।
मिट्टी गीली थी वहाँ,
और मन भी बस में था कहाँ।
तुमसे मिलन की थी तलब,
हौसला भी था ग़ज़ब।
इसी बेख़्याली में
पाँव था फ़िसल गया,
पर खुशनसीब था बड़ा
मेरा चाँद मुझको मिल गया।

