शून्य के स्वर
शून्य के स्वर
एक अनाम रिश्ता, एक बेनाम सा दर्द,
मैंने अपने दिल में कहीं छुपा रखा है।
मैंने अपनी आरजुओं को वहीं-कहीं,
उसकी घनी जुल्फों में छुपा रखा है।
उसका नाम ज़माने से छुपा रखा है,
रिश्ते पर झीना सा पर्दा डाल रखा है।
पर दर्द को किस किससे छुपा लूँ?
उसका आँचल दिल पर उड़ा रखा है।
उसकी आँखों के आईने में छिपी है,
न जाने कितनी तस्वीरें मेरे दिल की,
पर वो मुझसे नज़रें मिलाती ही नहीं।
उसकी यादें बिखर गयीं हैं ख्वाबों में,
बंद पलकों में बेताबी सही जाती नहीं।
उसकी मासूम निगाहें शायद शून्य में,
खोजती हैं मेरे सभी सवालों के जवाब,
मुझसे दिल की हालत कही जाती नहीं।
इस हालत को किस-किस से छुपा लूँ?
'शील' अब और बेताबी सही जाती नहीं।
