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ऐलान

ऐलान

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यादों का धुँआ उठ रहा है भीतर जल रही आग से,

उनका चेहरा झुक रहा है मोहब्बत के अंदाज़ से।


आगाज़ तो हो ही गया अंजाने में एक अहसास का,

कुछ भी हो जाये अब गुजरना ही होगा अंजाम से।


तरफदारी ये जमाना अब करे या न करे हमारी,

हमें चलना ही होगा हमारे ही दिलों के इंतजाम से।


बस हलकी सी हवा दे दो भीतर की इस हलचल को,

आने से पहले क्यूँ न गुजर जाये आने वाले तूफान से।


सागर आंखों से छलक गए हैं भव्यता की भनक से,

एक-दूजे के हो जाये किनारे जज़्बातों के उफ़ान से।


तुम कौन हो और मैं कौन हूँ आओ भूल जाये सब,

एक होने का मौन ऐलान हो जाये आज सरेआम से।


"परम" रिश्तों में कहाँ है औरत और कहाँ है मर्द ?

इंसान से उपर उठ जाये इसी "पागल" ऐलान से।


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