जन्नत
जन्नत
दैर-ओ-हरममें हमे जन्नत के खूबसूरत धोखे मिले,
और दीदार ए यार से ज़मीन पे ही जन्नत के मौके मिले !
वो खम पे अटकी नज़रे हमारी, बस अटकी ही रही,
तेरे हुश्नकी वादियो में हमें महकती सबा के झोंके मिले !
रास्ता भूल गए हमारे शहर के मैख़ाने का उसी रोज़ से हम,
जिस दिन से तेरी आँखों से पी कर लड़खड़ाने के मौके मिले !
तेरे बाद अब याद कर रहे तेरा वो मुस्कुराता हुवा चहेरा,
कैसे बताए अब तन्हाईओं में एक सुकून हमें रो रो के मिले !
एक "परम" जन्नत रोज़ उतरती रही तेरे हसीन पहलूमें,
अब दर दर भटकते रहे हम तेरे लिए "पागल" हो हो के !