पागल सफ़र
पागल सफ़र
तुम कैद हो तुम्हारे अंदर,
लिए एक खामोश समंदर !
फ़िज़ाओं का पैग़ाम सुन ले,
ख़ुद के अंदर कभी ठहर !
तेरा अक्स देख रहा तुझे,
झांक ले ज़रा पानी के अंदर !
कितनी ख़ामोशी लिए तुम,
बैठी हो झुकाकर ये नज़र !
लगता है ढूंढ रहा तुझको,
एक सुकून तेरे ही अंदर !
एक दिन वसंत आएगा,
कह रहा एक एक सज़र !
'परम' मंज़िल तलाश तेरी,
जारी है अभी 'पागल' सफ़र !

