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Gordhanbhai Vegad (પરમ પાગલ)

Drama

5.0  

Gordhanbhai Vegad (પરમ પાગલ)

Drama

संजीदा सितम..

संजीदा सितम..

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इतना बता दे शाकिया..मुझको तू....

मैखाने भी कभी क्या आँखों में होते हैं....!

तुझसे निकलकर इन जादू भरी.....

गहराइयों में हम खुद को क्यूँ खोते हैं..!


जाम भी नहीं बोतल भी नहीं फिर भी...

कैसी है ये अजीब सी चश्मे-शराब....!

उबरकर जैसे तैसे तुझसे ना जाने क्यूँ..

इन निगाहों में बार-बार चाहकर उलझते हैं..!


गम ये नहीं शाकी मुझको की कभी...

हद से ज़्यादा क्यूँ पी लेता हूँ...!

प्यासे हम तब भी रहते हैं..

जब-जब हम ज़्यादा पी लेते हैं...!


मेरे लिए मैखानों का मैखाना है..

ये दो तेरी "परम" आँखे मेरे सनम...!

कैसा है ये संजीदा सितम तेरा की....

हम सितम्गर के लिए भी "पागल" होते हैं….।।


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