निर्धुम ज्योति
निर्धुम ज्योति
बिन राहों की मंज़िल के सफर पे तुम चल सको तो चलो,
अंतर आसमानमें परिंदों की तरह अकेले उड़ सको तो चलो !
न कोई हमसफ़र न कारवाँ ये बेबूज़ पथ पर रहा कभी,
सबकुछ छोड़कर अलगारी बनकर आगे बढ़ सको तो चलो !
एक अवसर है ये जीवन बस इतना समझ लो तुम,
एक बीज की तरह मिटकर फिर खिलकर महक सको तो चलो !
एक लौ जला लो ख़ुद के भीतर अपना वजूद जलाकर तुम,
फिर एक अकंप निर्धुम ज्योतिकी तरह जल सको तो चलो !
माना कि बहुत मुश्किल है, असंभव नहीं ये राहें "परम" की,
मेरी तरह तुम भी "पागल" बनकर फ़िर चल सको तो चलो !