माला आंसू की
माला आंसू की
अपनी ही जिंदा लाश को अपने ही कंधे पे तुम क्यूँ ढोते हो,
ये पूरा जीवन तो नाम है मुस्कुराने का, फिर क्यूँ रोते हो ?
खामोश दीवारों के संग रोज दर्द के हो रहे मुशायरे तुम्हारे,
मुजे पता है, तुम्हारे सारे ख़्वाब जागते है और तुम सोते हो !
आंखो में तुम्हारे एक गुलशन विरानेका ग़मसे हरा भरा,
ये किसके लिए नज़रानेमें रोज तुम माला आंसू की पिरोते हो ?
क्या है मंज़िल,रास्ता,कहाँ है जाना और क्या है पाना तुम्हें ?
एक बेबूझ अहसासों के दरिया में रोज ख़ुदको क्यूँ खोते हो ?
एक नज़र उठा, वो खड़ा "परम" की तरह तेरे हर चारसू,
जब दाग ही नही तो "पागल" की तरह आँसूओ से क्यूँ धोते हो ?
