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Gordhanbhai Vegad (પરમ પાગલ)

Others

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Gordhanbhai Vegad (પરમ પાગલ)

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माला आंसू की

माला आंसू की

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अपनी ही जिंदा लाश को अपने ही कंधे पे तुम क्यूँ ढोते हो,

ये पूरा जीवन तो नाम है मुस्कुराने का, फिर क्यूँ रोते हो ?


खामोश दीवारों के संग रोज दर्द के हो रहे मुशायरे तुम्हारे,

मुजे पता है, तुम्हारे सारे ख़्वाब जागते है और तुम सोते हो !


आंखो में तुम्हारे एक गुलशन विरानेका ग़मसे हरा भरा,

ये किसके लिए नज़रानेमें रोज तुम माला आंसू की पिरोते हो ?


क्या है मंज़िल,रास्ता,कहाँ है जाना और क्या है पाना तुम्हें ?

एक बेबूझ अहसासों के दरिया में रोज ख़ुदको क्यूँ खोते हो ?


एक नज़र उठा, वो खड़ा "परम" की तरह तेरे हर चारसू,

जब दाग ही नही तो "पागल" की तरह आँसूओ से क्यूँ धोते हो ?



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