STORYMIRROR

Gordhanbhai Vegad (પરમ પાગલ)

Fantasy Others

4  

Gordhanbhai Vegad (પરમ પાગલ)

Fantasy Others

खामोशियां

खामोशियां

1 min
379

मेरे अल्फाजों को क्यूं संवार रही है तेरी खामोशियां?

फिर एहसासों को क्यूं संभाल रही है तेरी खामोशियां ?!!


गमों की तपिश में जलकर हम खाक होते है जब जब,

तब बर्फ़ सी ठंडक क्यूं पहुंचा रही है तेरी खामोशियां ?!!


ये ज़ुबान तो चुप सी हो गई है तुम्ही को सोचते सोचते,

और इशारों से हमें क्यूं बुला रही है तेरी खामोशियां ?!!


तेज़ हवाओं के भरोसे दीप लफ्जों के जला रहा हूं रोज,

मन के अंधियारे में क्यूं रोशन हो रही तेरी खामोशियां ?!!


जीने के लिए एक सपनों का नशेमन बन गया मन में,

अब मेरी तन्हाइयों को क्यूं बांटती है तेरी खामोशियां ?!!


मौत के करीब खड़ी है कब से ये "परम" जिंदगी मेरी,

क्यूं "पागल" बन कर उम्र बढ़ा रही तेरी खामोशियां ?!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy