सिगरेट
सिगरेट
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जलती हुईं सिगरेट से उड़ रही राख किसके अरमानों की,
धुएं में बिखर गई उम्मीद अपने वजूद के फरमानों की !
जली है जिंदगी खुद की खुद के ही हाथों से, खुद के ही हाथों में,
शमा न हो नसीब जिसको, बात है ये उस परवानों की !
सारा शहर जल रहा एक उम्मीद की अनदेखी आग में,
कभी तो बुझेगी, मुझे भी है आस ऐसे चमकते उनवानों की !
कई बेबूझ तस्वीरें बिखरी पड़ी है ये धुएं की लकीरो में,
मुरादे पाने की ख़ाक बन के उड़ चुकी है कई हज़रतों की !
कहाँ खो चुकी मेरी "परम" आखरी अलामत ज़िन्दगी की,
अब राख में ढूंढ रहा हूँ शक्ल मेरे "पागल" जज़बातों की !
