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PANKAJ GUPTA

Abstract Fantasy

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PANKAJ GUPTA

Abstract Fantasy

तुम्हारे लफ़्ज़

तुम्हारे लफ़्ज़

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सुनो !

तुम ख़ास ख़्याल रखना

अपने 'सुकंठ' नामक श्रोत का

जिससे निकलती 'लफ़्ज़' नामक

बहते दरिया में तैरना 

गायब कर देता है

तमाम तकलीफों को 

मात्र क्षण भर में।


तुम्हारे 'लफ़्ज़' लय में 

डूबी है इस कदर

मानों एक ग़ज़ल हो

एक नए अंदाज में।


लगता है ख़ुदा ने इसे

बड़ी फुर्सत से नवाजा है

जहां से गुजरती है

जिंदा कर जाती है

बंजर जमीं को।


तो सुनो! अब डर नहीं लगता मुझे

इस दुनिया को छोड़कर जाने से

क्योंकि तुम आवाज लगा 

मुझे वापस बुला लोगी।।


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