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PANKAJ GUPTA

Action Crime Inspirational

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PANKAJ GUPTA

Action Crime Inspirational

शुद्ध से अशुद्ध

शुद्ध से अशुद्ध

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लौट जाना चाहती हूं

उस आदम के पास

जो पत्थरों को आपस में रगड़ कर 

आग पैदा कर रहा था


ये आदम से आदमी बनने की

खौफनाक प्रक्रिया का पहला पड़ाव था

आदमी बने लेकिन आदमियत खोती गई

जो 'लाल' जीवन देता है


उससे नफ़रत होती गई

उन दिनों में मैं अपने ही घर में

मेहमान बन कर रह गई

नसीहतें तमाम दी जाती है


संभल कर रहना, कहीं दाग न लग जाय

भाई से दूर रहना, उसे ख़बर न लग जाय

कितना भी हो दर्द, कर लेना बर्दाश्त

कराहकर घर में न करना शांति का ह्रास

किचन में जाकर क्लेश न करना


पूजा घर जाकर अशुद्ध न करना

हा वो अलग बात है हमलोग

माँ कामाख्या की पूजा करने जाते है

हा वो अलग बात है, जरूरी है यह 


लाल रंग एक नया जीवन देने के लिए

हा वो अलग बात है कि मैं

माहवारी बाद शुद्ध हो जाऊंगी

लेकिन बस अब बहुत हुआ


क्या केवल लज्जा हया 

मर्यादा ही नारी के श्रृंगार है ?

हमें हर महीने शुद्ध और अशुद्ध नहीं होना

इसीलिए लौट जाना चाहतीं हूँ

उस आदम के पास

जो शुद्ध अशुद्ध में फर्क नहीं जानता था।


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