सोच
सोच
क्या में बोलू इस दुनिया के बारे में
सोचूँ तो लगता है कौन अपना कौन
अपने बनने का दिखावा कर रहा
ये दुनिया है जो तुझे उस मंजर में फँसा देगी
जहाँ तू टूट जाएगा फिर
बोलेगी बाँदा था कि कमजोर
अब दुनिया को क्या कोसूँ जब खुद की सोच में
काला तिल है आज खुद से नाराज़ हूँ
कि सोचती क्यों हूँ इतना मैं।