अनमोल धरोहर जीवन
अनमोल धरोहर जीवन
गुमनाम अन्धेरे तहखाने में
क्युं करते हो वास रे
मानस जन्म है उदित भोर संम
फैला दे असीम प्रकाश रे
आशा के दियों से छँटते
घोर अन्धेरे हताशा के
बिन श्रम के मरु हरा नही होता
ना होते नवीन अंकुरण
ना खिलते पुंज कंचन धान के
हो दृध सन्कल्प तो बहते झरने
शुष्क तप्त बंजर टीलों से
हो लक्ष्य साधना समर्पित
हो तन कर्म को अर्पित
तो मंजिल चलकर आती मीलों से
अनमोल धरोहर जीवन रतन
क्युं करते हो व्यर्थ रे
सर्थकता की मूल पहिचानो
करो स्वयं से साक्षात्कार रे।