खुशियों का पता
खुशियों का पता
एक दिन मैं बैठा था,
अपने घर के चबूतरे पर।
देखा कि दूर कहीं से कोई,
परछाई चली आ रही है।
मैंने सोचा कि चलो यह मुझे,
कोई काम दे जायगी।
या शायद मुझ से खुश होकर
कोई बड़ा इनाम दे जायगी।
अगर ये कोई लड़की हुई तो ,
मुझे एक रंगीन शाम दे जाएगी।
हो सकता है ये कोई देवी हो,
जो मुझे खुशियों के जाम दे जाएगी।
पर जब वो परछाई पास आई,
तो देखा कि यह तो मैं खुद हूं।
जो ढूंढ रहा हूं , अपनी ही खुशियों का पता।।