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Neha khetan

Abstract Drama Tragedy

4.6  

Neha khetan

Abstract Drama Tragedy

कैसी ये विपदा आई

कैसी ये विपदा आई

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कैसी ये विपदा आई,

किसी को कुछ समझ ना आयी। 

सभी के मुँह पे बस एक ही बात की सुनवाई,

हमे घर कैद की सजा न जाने किसने है सुनाई।

ना खुली हवा मे सांस लेने की इजाजत है,

और ना अपनों से गले मिलने की मंजूरी। 


ना कहीं त्योहारों की रौनक है,

ना शहनाई की गूँज ,

ना मोहोल्लों मे कोई शरारत है,

ना रास्तों पे कोई हरकत। 

फिर भी हर घर की दीवारों ,

मे एक नई चमक है। 


हर अख़बार और खबर मे,

बस एक ही बात का शोर है। 

रोज नए नुस्के और 

नए आकड़ो की दौड़ है। 

यहाँ दुर्घटना से ज्यादा,

चिकित्सा की होड़ है। 


कहीं नए शामियानों की महक है,

तो कहीं घरो के चूल्हों मे भूके पे की आहात। 

कहीं अपनों के साथ वक़्त बिताने की ख़ुशी है,

ही कहीं अपनी को खो देने का गम। 

खुली दुकानों मे भी अजीब सी मायूसी है छाई। 


न जाने कैसी ये विपदा आई,

किसी को कुछ समझ ना आयी। 

क्या अच्छा है और क्या बुरा है,

यह बस अब किस्मत की परछाई। 


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