मुखौटा
मुखौटा
अपने नन्हे कदमो से आंगन की शोभा बढ़ाती ,
प्यारी सी मुस्कान से सभी के दिलो मे बस जाती ।
ना जाने कौनसे मुखौटे की पहचान बनती !
गलती होने पे कान खींचती,
अपने बड़े होने का रॉब दिखती,
कभी लड़ती तो कभी हंसाती,
हमारी रक्षा का हर फ़र्ज़ निभाती।
ना जाने कौनसे मुखौटे की पहचान बनती !
सूरज की पहली पहर को उठ जाती,
खुद से पहले हमें खिलाती,
कभी प्यार से तोह कभी डांटकर समझाती,
अपने अंचल की छांव मे हमें सुलाती ।
ना जाने कौनसे मुखौटे की पहचान बनती !
होतो पे लाली , बालों मे गजरा लगाती,
हाथो मे चूड़ा , माथे पे बिंदिया सजाती,
हर रिश्ते की परिभाषा समझकर,
नए रंग रूप में ढल जाती।
ना जाने कौन से मुखौटे की पहचान बनती !
ऐनक पहनकर अपना पिटारा खोलती,
कभी टॉफ़ी, तो कभी राबड़ी खिलाती ,
कभी राजा , तो कभी रानी की कहानियाँ सुनाती,
अपने शब्दों की माला मे हमारा बचपन सजाती।
ना जाने कौन से मुखौटे की पहचान बनती !
ना जाने कौनसे मुखौटे मे कौनसी पहचान छुपी है ,
हर घर आंगन मे, एक आवाज तो सुनी है।