मेरी क़लम
मेरी क़लम
मेरी क़लम आज ख़ामोश है
कुछ खोयी हुई कुछ अस्पष्ट है
वास्तविकता देख आज वो निशब्द है
वीरान सड़कों में राह भटक गयी है
मेरी क़लम वो आज ख़ामोश है
जो आज कल दिख रहा, उसे लिखना नहीं
जो रोज़ाना बीत रहा, उसे और अब कहना नहीं
वो कितना लिखे वो कितना कहे
उसे कुछ साधारण की चाह है
उसे कुछ सामान्य का मोह है
मेरी क़लम आज सोयी हुई है
मेरी क़लम वो आज ख़ामोश है
जाने वो कैसा समय था
जब बिलकुल समय नहीं था
ऐसा ही समय वो ढूंड रही है
समय बदल जाए यही सोच रही है
मेरी क़लम आज सोयी हुई है
मेरी क़लमवो आज ख़ामोश है
स्याही अब सूख रही है
शब्दों का दुष्काल पड़ा है
बंद कलम पर जो तमस् चढ़ा है
वो उजाले की प्रतीक्षा कर रही है
मेरी कलम आज निशब्द है अस्पष्ट है
मेरी कलम वो आज ख़ामोश है
मेरी क़लम वो आज ख़ामोश है।