पराए हुए
पराए हुए
बड़ी हो गयी,सयानी हो गयी
हमारी प्यारी लाडो
कर दें उसके हाथ पीले
अब कर्म निभाएँ आओ....
इतनी जल्दी क्या है, पापा
अभी तो मुझे और समय
आप सब के पास बिताना है
थोड़ा आपका साथ देना है
माँ का हाथ बटाना है....
तुम अपने घर जाओ गुड़िया
बाप जैसे ससुर जी हैं
वहाँ पर फ़र्ज़ निभाना
अपनी माँ जैसी सास का
पूरा हाथ बटाना......
नए लोग नया घर
मैं कैसे सब कर पाऊँगी?
अपने भाई व बहन के बिना
मैं कैसे जी पाऊँगी?
मेरा जो बिस्तर है
व मेरा जो तकिया है
क्या उसकी भी कर दोगे
विदाई?
उनके बिना मुझे
कैसे नींद
आएगी?
इतना मत सोचो बेटी
यह तो जग की रीत है
तुम्हारी माँ ने भी तो
निभायी यही प्रीत है.....
हर घर, हर गली में
यही होता आया है
बेटी की बड़ती उम्र देख
बाप ने यह फ़र्ज़ निभाया है....
मेंहदी लग गयी हाथों में
कर दिया मेरा दान आपने
अग्नि में जल गए
थोड़े जो अरमान हैं
अब फेरे भी लग गए सात
बना ही दिया मेहमान आपने...
इतना तो मत रो बिटिया
तुम्हारा साथी कितना है न्यारा
मान करेगा, पलकों पे रखेगा
यह है मेरा वादा....
कोई दुख की धड़ी ना आए
कोई उलझन कभी ना सताए
हमारी याद कभी ना आए
जाओ बिटिया
अपने घर
अब तुम हुए पराए.....
