अहसास
अहसास
ज़मी आसमां की दूरियों से परे
सातवें बर्रे आजम से ऊँचे
ख़्यालों में खोये
किसी पर्वत की एक ग़ार में
एक तपस्वी लीन बैठा हो जैसे
सावन में झमाझम बरसात के बाद
पींग बन के जो बरसे
जिस्मों से रूह में जज़्ब होती बरसात हो जैसे
कुछ इस तरह से तेरे ख्यालों में गुम रहता हूं
मैंने कुछ गीत लिखे हैं
तेरी खनकती हुई पाज़ेब पर
कुछ चूड़ियों और कुछ
तेरे आरिज़ों को चूमती
स्याह घुंघराली लटो पर
जो तुझे सुनाने है किसी मनचली सी धुन पर
मगर अब तेरा होना एक वहम के सिवा कुछ भी नहीं
मैं जानता हूं तू इस ज़मी पर तो है पर मेरी ज़िंदगी में नहीं
अब तेरा नाम तलक मुझसे लिखा नहीं जाता
लोग समझते हैं में भूल गया हूं
मुझे अब लिखना नहीं आता
उनकी मर्ज़ी के लफ़्ज़ों से सजी कोई ग़ज़ल कैसे लिखूँ
जिसे वो शाहकार कहे ऐसी कोई कहानी कैसे लिखूँ
मैं जानता हूं सिकंदर के विजयी सफ़र की कहानी
सच घोल के ज़हर को पीने की सुकरात की कहानी
मैं जानता हूं माया नाज़ योद्धाओं के अमर क़िस्से
अखिलिस, हरक्युलिस, अर्जुन महाबली के क़िस्से
बजुज़ युगों दर युगों बदलती जबाने और
अक़ीदों के रंग बदलते तेवरों के साथ साथ
परवान चढ़ते ज़रूरतो के साथ फितरी बलाओं से
लोहा लेती हुई जोश होश को संग लिए सांइस के साथ
परवान चढ़ते हुए ज़िंदगी की कहानी
एक जहाँ चोट खाते हुए
एक जहाँ आगे बढ़ते हुए
और
क्याँ कुछ नहीं जो लिख सकता हूँ
सुनाने के लिए
अल्फ़ाज को नजर से
मन्ज़र बना के दिखाने के लिए
मगर
एक मुद्दत से मैं उसकी यादों में इस कदर घिरा हूँ
मेरे दिल को किसी अहसास की कोई हवा भी नहीं लगती
और जब जब लिखा अपना अहसासे गम
किसी को मेरी लिखी कोई कविता
कविता नहीं लगती।

