अगर है मोहब्बत हमसे
अगर है मोहब्बत हमसे
देखता हूँ जब भी तुमको यहाँ से गुजरते हुए
जाने क्यों दिल में इक अजीब हलचल होती है
दिल चाहता हैं देखता रहूँ तुमको टुकुर-टुकुर
जब तक आँखों से ओझल न हो जाओ
कुछ तो बात होगी तुम्हारे आकर्षण में
वरना कोई यूँ ही खींचा चला नहीं आता
रात की तन्हाईयों में अक्सर सोचता हूँ
किसने तराशा होगा संगमरमर की मूरत को
ये हवायें, आसमान में उड़ते मतवाले बादल
जैसे हमारी ही प्रेम की कहानियाँ लिख रही हैं
कानन वन में झूमती देवदार की टहनियाँ
कलियों से जैसे हमारे रिश्तों की बातें करती हैं
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में जो बादल का टुकड़ा उलझा है
जी चाहता है अपनी हथली में उठाकर
प्यास से तड़पते मरुस्थल को जाकर भेंट कर दूँ
शायद निष्ठुर बादल भूल गए हैं उधर का रास्ता
अगर तुम चाहो तो मुझे ले चलो उस तरफ़
जहाँ काट सकूँ दो पल सुकून के तुम्हारी बाहों में
तारों की रौशनी में तलाशते हैं फ़ुर्सत के वह पल
जिनको छोड़ आये थे हमारी पहलु मुलाक़ात में
तनिक बताओ तुम भी मुझे उतना ही चाहती हो
जितना चाहता है चांद अपनी मधुर चांदनी को
तुम सिर्फ़ एक बार कोशिश तो करके देखो
जिस रूप में मुझे ढालोगी, मैं ढल जाऊंगा
क्या याद है पहली मुलाक़ात के सुनहरे लम्हे
पलकें झुकाकर कितना सकुचाई थी
अपनी कोमल उंगलियों से हरी दूब को
जमीं से उखाड़कर कितना लज़्ज़ाई थी
ग़र मोहब्बत है हमसे तो आज शाम मिलना
उसी जगह जहाँ मिले थे हम पहली बार
हम भी आज़माना चाहते है आज उसको
पहली नज़र में जिसको दिल थमा बैठे थे।

