अदा
अदा
झुकी पलंके ये रेशमी चुनरी उसपर मांग में टीका,
होठों पर खामोशी गहरी पर आखों में शोर गहरा,
वो नूर फिर कभी दिखा नहीं,
उसके जैसा कोई और फिर दिखा नहीं,
हम उन पर लिखते भी तो क्या,
उनकी खूबूरती पर आखिर लिखते भी तो क्या,
वो शमा थी हम परवाने हो गए,
वो फूल सी नाजुक हम उनकी खुशबू हो गए,
वो ज़रा पलके झुका के बात किया करती है,
एक अजीब ही ढ़ंग से वो हाल ए दिल बयान किया करती है,
वो एक गीत अकसर गाया करती थी,
ना जाने किस को दिन रात याद किया करती थी,
कोई बता दो जा कर उन्हें हमारा हाल क्या है,
उनके बिना क्या दिन क्या रात है,
देखो जोगी सा मारा मारा फिर रहा हूं,
हर गीत कविता बस तुम्हारे लिए ही लिख रहा हूं,
ये एहसास काफी पाक है,
मेरा इश्क़ खुदा सा पाक है,
वो काली रात में जब मिलने आई,
सारे जग को वो मेरे लिए भूल आई,
ये प्रीत कैसी लगी,
इन पैरों को धुन ये कैसी लगी,
उनके पैर की झांझर दिन रात रांझा रांझा कहती थी,
वो भी आज कल हीर सी बावरी रहती थी।