अब तो होश में आओ
अब तो होश में आओ
यह जो आज कल तुम कर रहे हो,
अपने ही हाथों से कत्ल रिश्तों का कर रहे हो।
किसी की खुशी में क्यों ना शामिल,
क्यों दुख का कारण बने हो।
क्यों कदर नहीं अपनों की,
मतलबी तुम बड़े हो।
जरा सामने तो आओ,
क्यों मुखौटा मुंह धरे हो।
क्यों तड़प नहीं है तुम में,
क्यों एहसास मर चुके हैं।
अपनी लगाई आग में ,
तेरे अपने हाथ जल चुके हैं।
अब तो होश में आओ
क्यों बेहोश तुम पड़े हो।
अपने ही हाथों से
कत्ल रिश्तों का कर रहे हो।
तुम से तो अच्छे वह हैं,
जो कम में जी रहे हैं।
जो भी मिल रहा है,
मिल बांट के ले रहें हैं।
छोड़ो दौलत का लालच,
अपनों को गले लगा लो।
थोड़े में समेट लो खुशियां,
खुशियों का जहां बसा लो।
जी लो तुम जी भर के,
क्यों जीते जी मर रहे हो।
अपने ही हाथों से,
कत्ल रिश्तों का कर रहे हो।