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Monika Garg

Romance

5.0  

Monika Garg

Romance

जो कभी जलाया था तेरी राहों में

जो कभी जलाया था तेरी राहों में

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जो कभी जलाया था तेरी राहों में,

वो मुझे कहीं चिराग ना मिला।


बहुत कुछ मिला मुझे मगर,

तेरी मोहब्बत का लिबास ना मिला।


गुजरे बहुत तेरे दिल की गलियों से,

पर कदम का कहीं निशान ना मिला।


भीगती तो रही बरसो मैं बारिश में,

पर मौसम कभी मुझे बाहर ना मिला।


क्यों सुनाऊं तुझको मैं शिकवा गिला,

मुकद्दर का ही मुझको साथ ना मिला।


पलकों में तस्वीर भी धुंधली हो गई,

फिर कभी यार-ए- दीदार ना मिला।


सवाल तो बहुत इन आंखों में मगर,

पर कहीं से उनका जवाब ना मिला।


मन्नतों के बांध दिए कितने ही धागे,

एक भी धागे का मुझे सार ना मिला।


सजती रही महफिल दिल के तले,

पर किसी का जहां ठहराव ना मिला।


मोहब्बत तो खेल जिस्म का जहां,

जहां किसी को रूह-ए-यार ना मिला।


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