मैं जननी
मैं जननी
जननी हूं मैं इस जहां की ,
फिर भी मेरी पहचान नहीं!
मेरी ही संतान के पीछे ,
मेरा ही नाम नहीं!!
माना के दुर्गा चंडी काली हूं ,
मैं खुद अपनी पहचान बनाऊंगी।
पर इस मर्द प्रधान समाज से ,
मैं कब तक लड़ पाऊंगी।
सबर धैर्य ममता की
भी तो एक मूर्ति हूं,
सिर्फ चंडी बनकर लड़ते रहना
ही तो मेरा काम नहीं।।