Monika Garg

Romance

5.0  

Monika Garg

Romance

कैसे भुला दूँ तुम को

कैसे भुला दूँ तुम को

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समझा लेती हूं दिल को,

के हां भुला दिया तुम को,

पर कहां मैं तुम को भुला पाई।


कर दिया खुद से दूर तुम को,

पर कहां तुम से जुदा हो पाई।


जब भी देखा खुद को आईने में,

मेरी आँखों में तेरी सूरत नजर आई।


तुम तो बिलकुल बेखबर हो गए

मुझसे,

पर मैं न तुझ को खुद से अलग

कर पाई।


बिखेर कर मेरी जिंदगी को,

खुद को समेट लिया तुमने,

पर मैं कभी ना खुद को समेट पाई।


आज भी जब तेरी बात होती है,

आँखें नम, दिल में एक आहट सी

होती है।


बहुतों ने कहा भूल जा, एक किस्सा

ही तो था,

पर कैसे बताऊं सबको कि तू मेरी

जिंदगी का अहम हिस्सा था।


कैसे भुला दूँ तेरी यादों को,

हर घड़ी तो याद रहते हो।


कैसे बना लूँ उस दिल को पत्थर,

जिस दिल में तुम रहते हो।


आज भी जब अतीत के कुछ पत्र

पलटती हूं,

एक बार नहीं मैं कई बार टूटती हूं।


काश अपने इन छोटे-छोटे टुकड़ों को

मैं भी समेट पाती,

कुछ और नहीं तो कम से कम आने

वाली ख़ुशियाँ तो बटोर पाती।


शायद बहुत कमजोर हूं मैं,

जो अब तक खुद को न संभाल पाई।


जिस दिल में लिखा था नाम तुम्हारा,

वह दिल किसी और को ना दे पाई।


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