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Kanchan Prabha

Tragedy

4.6  

Kanchan Prabha

Tragedy

अब क्या करूँ मैं बेरोजगार

अब क्या करूँ मैं बेरोजगार

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कैसे सहूं मैं बेरोजगारी की मार

तन मन सब पर चले कटार

सहन ना होता परिवार का भार

अब क्या करुँ मैं बेरोजगार!


कौन सा अब मैं करुँ व्यापार

मन भी अब तो माने हार

जाऊँ अब मैं किसके द्वार

अब क्या करुँ मैं बेरोजगार!


सूना लगे मुझे जग संसार

कोई तो मुझसे करे करार

अपाहिज हुई है ये सरकार

अब क्या करूँ मैं बेरोजगार! 


सुना पड़ा मेरा घर बार

बच्चे करने लगे चीत्कार

कोई सुन ले उसकी पुकार

अब क्या करुँ मैं बेरोजगार !


मुझसे कर ले कोई दरकार

लगा दे कोई मेरा जोगार

बस थोड़ी सी मिले पगार

अब क्या करूँ मैं बेरोजगार !


करूँ हमेशा उनकी सत्कार

मेरी प्रार्थना सुन पालनहार

लगा दे मेरी भी नैईया पार

अब क्या करूँ मैं बेरोजगार !


 


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