आर्तनाद.!
आर्तनाद.!
उठती है टीस जब,
आत्मा की गहराइयों से।
व्याकुल हो उठता है मन अपनी,
मातृ भाषा हिन्दी के विछोह में ।।
गोद में जिनकी जन्म लिया,
ककहरा सीखा पला-बढ़ा।।
समृद्धि हुए संस्कारों से जिनके,
जीवन पर अमिट छाप पड़ा।।
खो रही अस्मिता हिन्दी,
हमारे ही अकर्मण्यता से।
दूर होती जा रही हो क्षत-विक्षत,
अपनों ही की उद्दंडता से।।
पीड़ित है आक्रांताओं के प्रहार से,
पुकार रही करुण-क्रंदन कर।
हो कोई वीर सुपुत्र जो,
कर सके रक्षण संकल्प कर।।
नोच रहे अस्तित्व को उनके,
कर बर्बरता दिन और रात।
सुन सको तो सुन देखो जरा,
एक दुखियारी का आर्तनाद।।