आरक्षण
आरक्षण
आरक्षण ने आग लगा दी, मानवता की बस्ती में।
दूर आग से ताप रहे हैं, बैठ लुटेरे कस्ती में।
खुद को पीड़ित कहने वाले, आज खून के प्यासे हैं।
वहीं देश में नुक्कड़-नुक्कड़, करते खूब तमासे हैं।
हक की खातिर लड़ने वाले, खूनी और दरिंदे हों।
कैसे मुमकिन है हत्यारे, अमन पसंद परिंदे हों।
आज थूकने का मन करता है ऐसी बर्बादी पर।
द्वेष घृणा नफरत से दूषित इस ओछी परिपाटी पर।
आरक्षण की भीख माँगकर, खुद को दलित जताते हैं।
वर्ण व्यवस्था के मुद्दे पर, राजा सा तन जाते हैं।
प्रश्न साफ है भीख माँगना ही जब उनको भाता है।
फिर समाज में समता जैसा प्रश्न कहाँ से आता है।
यदि समान हो तो समान स्तर से सोंचो तो जानें।
भीख छोड़कर हाथ मिलाने आगे आओ तो मानें।
वरना समता जैसी बातें करना बिल्कुल बन्द करो।
खुद को नीचा कहलाने से डरना बिल्कुल बन्द करो।
नीचे होगे तभी उठाने की कोशिश की जायेगी।
भला उठे को और उठाने कौन रवानी आयेगी।
खेत बेंचकर पल्सर ले ली, और गरीबी ओढ़े हो।
सच्चाई तो ये है साहिब, तुम सवर्ण के ड्योढ़े हो।
अगर गरीबी आरक्षण का मानक है तो प्रश्न कहाँ ?
एससी एसटी जनरल श्रेणी, का फिर बोलो प्रश्न कहाँ ?
क्या गरीब भी जाति धर्म के क्रम में बाँटा जायेगा ?
दलित छूट ले मौज करेगा, औ सवर्ण पछतायेगा ?
हद होती है, एक नीचता की भी अपनी सीमा है।
साठ साल आरक्षण पाकर भी विकास रथ धीमा है।
भीमराव ने क्या ऐसे ही भारत को सोचा होगा।
जिसमें घर के लोगों ने ही अपनों को नोचा होगा।
भीमराव ने साफ कहा था "आरक्षण तो देना है।
किन्तु इसे कुछ वर्षों में ही हमें हटा भी लेना है।
वरना समता के मानक का ग्राफ पलट भी जायेगा।
आज दलित पछताता है कल को सवर्ण पछतायेगा।"
भला शेर कब आरक्षण के बल पर आगे बढ़ते हैं।
वे भुजबल की ताकत ले निर्भीक मार्ग पर चलते हैं।
पर जिनकी आदत हो यों ही भीख मांग कर रहने की।
नहीं जरुरत उसको कुछ भी समझाने या कहने की।
मिट्टी खाकर जीने वाला स्वाभिमान से जीता है।
और भीख की सुधा फेंककर सादा पानी पीता है।
तुम निषाद, शबरी, प्रसेनजित, बालमीकि के वंशज हो।
वीर शिवाजी के पौरुष की तुम गौरवशाली रज हो।
बिजली पासी और उदा देवी से कई उदाहरण हैं।
जो दलितों के गौरवशाली स्वाभिमान का दर्पण हैं।
बालार्क तोड़ने को मसूद जैसे कुछ जब उन्मादी थे।
तो उससे टकराने वाले, सुहलदेव भी पासी थे।
ऐसे वीरों के वंशज हो, ओछी हरकत करते हो।
नेताओं से भीख माँगने की खातिर लड़ मरते हो।
आंदोलन की ओट लगाकर, काम घिनौना करना क्या।
स्वाभिमान से जीना अच्छा, नाक कटाकर मरना क्या।
मारपीट दंगे की भाषा, कौन सभ्य सिखलाता है।
कौआ और हंस का परिचय तो स्वभाव बतलाता है।
आरक्षण में जाने कितनों की ही आहें शामिल हैं।
आरक्षण के कारण पीछे रह जाते जो काबिल हैं।
यह अयोग्य को ऊँचे-ऊँचे ओहदों तक ले जाता है।
और योग्य इसके कारण दर-दर की ठोकर खाता है।
आगे बढ़ना है तो अपनी ताकत का संधान करो।
धक्का देकर बढ़ना छोड़ो, मेहनत करो उड़ान भरो।।