कब जाने
कब जाने
अभी दुनिया में आँख खुली
जन्म का मतलब भी न समझा
चाहतों के बोझ तले
दब गया कब जीवन सपना
पल-पल हर पल भाग रहा
कुछ सोया सा कुछ जाग रहा
सफर ज़िंदगी का अनवरत
आकांक्षाओं के जन्म से त्रस्त
कुछ टूटे सपनों के भ्रम से
थके कदम बढ़ती उम्र से
कभी रुके,कभी बेहाल हुए
कभी सच्चाई से दो-चार हुए
ढलते दिन और अनगिनत बातें
बीत गईं जाने कितनी रातें
कब सुनी याद नहीं लोरी
टूूूट रही साँसों की डोरी
गुम हुए जीवन के मोती
आँखों की बुझती है ज्योति
कल जन्में आज मरेे
जैैसे शाख से फूल झरेे
आशाओं के सावन से
कब रस बरसे मनभावन से
समय चक्र के चलते-चलते
जीवन के पल रहे ढलते
रह जाते बस शिकवे गिले
इंसान कब शून्य में जा मिलेे।