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Dr. Akshita Aggarwal

Tragedy Fantasy

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Dr. Akshita Aggarwal

Tragedy Fantasy

आँखें भी बोलती हैं

आँखें भी बोलती हैं

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जो जुबान नहीं बोल पाती। 

वह सब यह बोलती हैं। 

हाँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


आँखें तो मन का दर्पण होती हैं। 

जो मन में होता है वह सब यह बोलती हैं। 

हाँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


प्यार हो या गिला-शिकवा। 

सबकी यह भाषा बोलती हैं। 

हाँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


प्यार का इज़हार सबसे पहले,

यह आँखें ही तो करती हैं।

हाँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


उदासी हो या डर, 

बिना कुछ बोले भी यह सब जता देती हैं। 

हाँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


सिर्फ आँखें ही तो हैं।

जो शर्म की भाषा बोलती हैं। 

यही तो हैं जो लोगों के मन को, 

संवेदनाओं के तराजू में तोलती हैं। 

हाँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


ज़बान से ज़्यादा यह आँखें बोलती हैं। 

सब देखती हैं।

कभी हँसती हैं तो कभी रोती हैं। 

कभी-कभी दिल के सब राज़ खोलती हैं। 

हाँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


इंसान भले ही मुस्कुरा दे,

टूटे दिल के बाद भी पर,

आँखें दुख में सदा बरसती हैं।

क्योंकि, आँखें हमेशा सच बोलती हैं।

हांँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


मन के हर भाव, हर जज़्बात को, 

बिना हिचकिचाए बोलती हैं। 

ज़बान होती इनकी तो ना जाने क्या होता??.... 

बिना ज़बान के यह आँखें इतना बोलती हैं। 

हांँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


आँखें तो आईने की तरह साफ़ होती हैं। 

यह तो हमारे मन की हर व्यथा, 

गहराई से कहती हैं।

हांँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।


महसूस करो तो, 

आँखें सब बोलती हैं और 

सदा सच बोलती हैं। 

जैसे- 

झुकी हो आँखें तो शर्म की भाषा बोलती हैं। 

घबराई हो आँखें तो चिंता की भाषा बोलती हैं। 

चमक रही हो आँखें तो उत्साह की भाषा बोलती हैं। 

भरी हो आँखें तो दुख की भाषा बोलती हैं।

लाल हो आँखें तो क्रोध और नफ़रत की भाषा बोलती हैं।

हांँ दोस्तों, आँखें भी बोलती हैं।



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