आखिर क्यों??
आखिर क्यों??
तड़प औ चुभन की है ये कहानी।
औरत पे सितम उसी की ज़ुबानी।।
होते ही पैदा कोसी गई घर में,
ये उसकी व्यथा है बरसों पुरानी।
औरत पे सितम उसी की ज़ुबानी।।
पिता का घर भी ना उसका हुआ है,
ना उसको समझा दूजे घर की रानी।
औरत पे सितम उसी की ज़ुबानी।।
सदा झुकती-गिरती फिर भी सँभलती,
यह उसकी व्यथा किसी ने ना जानी।
औरत पे सितम उसी की ज़ुबानी।।
बेटियों ने इतिहास रच कर दिखाया,
तुलना की गई फिर भी बेटों से बेमानी।
औरत पे सितम उस की ज़ुबानी।।
उसके अस्तित्व के लिए लड़ रही वो,
बिरले मिले जिन ने बात उसकी मानी।
औरत पे सितम उस की ज़ुबानी।।
मानव ने ना समझीं तकलीफें उसकी,
ढ़ाता गया जुल्म किसी की ना मानी।
औरत पे सितम उस की ज़ुबानी।।
हैवानियत तक ना रुका एक पल वो,
नारी को लज्जित कर ना किए कर्म इंसानी।
औरत पे सितम उस की जुबानी।।
कोई तो उसकी व्यथा अब भी सुन लो,
उसे चाहिए प्रेम वर्षा रूहानी।
औरत पे सितम उस की जुबानी।।
तड़प औ चुभन की है ये कहानी।
औरत पे सितम उसी की ज़ुबानी।।