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Gyaneshwari Vyas

Tragedy

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Gyaneshwari Vyas

Tragedy

: आलम दिल का

: आलम दिल का

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क्या हुआ? ये समंदर में भी छाई, कैसी तन्हाई है!

मुद्दतों बाद चाँद निकला फिर भी, चारों तरफ ना चाँदनी फैलाई है!

कितनी विचित्रता भरी है दुनिया, कैसे लोगों से पाई रुसवाई है!

किससे कहें वेदना दिल की , कि शामें मकबरे सी गुज़रती पाईं हैं!

लकीरों से हमेशा नाकाम रहे, औ बेज़ार रणनीति से भी मुश्किल ही पाई है।

न भरोसे हाथ लगे न इंसा करीब,बस बेबसी केवल नसीब आई है।

तारतम्य न हो सका स्थापित, औ स्याही किताबों में बिखरी पाई है।

गागर ना भर सका खुशियों से, उदासी ही किस्मत में आई है।

कब जलेगा ज्ञान दीपक, कब उमंग की दिवाली मिल पाई है!

ख्वाब हमेशा ही रहे अधूरे, जीवन पतझड़ में पड़ा दिखाई है!

चल पड़े हैं फिर भी राह नापे, शायद कभी प्रेम लहर मिले आस लगाई है!

यही है ज्वार-भाटा ज़िंदगी का, दर्द अनगिनत पर मुस्कान पड़ती कभी दिखलाई है।।



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