पिता का साया
पिता का साया
जब भी खुद को दुःख में परेशान औ अकेला पाया,
साथ पिता का मैंने हरदम आसपास ही पाया।।
जब भी रुलाने को लोगों का जमावड़ा उमड़ आया।
साथ पिता का मैंने हरदम आसपास ही पाया।।
जब भी तकलीफों ने अपना सिर ऊपर उठाया।
साथ पिता का मैंने हरदम आसपास ही पाया।।
जब भी जीवन में खुद को अकेलेपन से घिरा पाया।
साथ पिता का मैंने हरदम आसपास ही पाया।।
जब भी ज़िंदगी को प्यार से विहीन औ दूर पाया।
साथ पिता का मैंने हरदम आसपास ही पाया।।
जब भी लड़की समझकर अत्याचार का बड़ा साया।
साथ पिता का मैंने हरदम आसपास ही पाया।।
जब भी रंज़िशों ने रिश्ते में खलल पहुँचाया।
साथ पिता का मैंने हरदम आसपास ही पाया।।
जब भी किसी मोड़ पर साया भी रास ना आया।
साथ पिता का मैंने हरदम आसपास ही पाया।।
