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Gyaneshwari Vyas

Inspirational

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Gyaneshwari Vyas

Inspirational

एक विनती ईश्वर से

एक विनती ईश्वर से

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प्रभु मेरे तुम कब आओगे, विरह ने खूब रुलाया है!

जीवन में अनवरत प्रेम को, मैंने तुम पर ही लुटाया है।।


सब ने बहुत है टोका मुझको, हरदम यूँ ही रोका मुझको।

मैंने भी ज़िद ठान एक ही, तुमको अपना बनाया है।

जीवन में अनवरत प्रेम को, मैंने तुम पर ही लुटाया है।।


सबने है दुत्कारा मुझको, प्रीत रीत की ना दी मुझको,

कहने को ना कोई साथी, बस तुमको ही मित्र बनाया है।

जीवन में अनवरत प्रेम को, मैंने तुम पर ही लुटाया है।।


तकलीफों ने फाँसा मुझको, चक्रव्यूह में जकड़ा मुझको।

कान्हा बनकर तुम आओगे, जैसे द्रौपदी का दामन बचाया है।

जीवन में अनवरत प्रेम को, मैंने तुम पर ही लुटाया है।।


कमज़ोर समझ न अपनाया मुझको, मौसम सा बदला है मुझको।

मीरा की भक्ति को शक्ति, देकर तुमने ही प्रबल बनाया है।

जीवन में अनवरत प्रेम को, मैंने तुम पर ही लुटाया है।।


कुपित मान हुंकारा मुझको, दूषित कर के निकाला मुझको।

तुम तो सबके दीनबंधु हो, दुखियों का बीड़ा भी उठाया है।

जीवन में अनवरत प्रेम को, मैंने तुम पर ही लुटाया है।।


आस ना है अब किसी से मुझको, प्रतिबिंब सा अब रमा लो मुझको।

मोक्ष प्राप्ति का द्वार खोल दो, तुमसे ही उम्मीद का सागर पाया है।

जीवन में अनवरत प्रेम को, मैंने तुम पर ही लुटाया है।।


तुम बिन ना जीना है मुझको, तुम बिन नहीं है चैन भी मुझको।

'स्मृति' को अब भक्ति दान दो, जैसे भरत को गले लगाया है।

जीवन में अनवरत प्रेम को, मैंने तुम पर ही लुटाया है।।


प्रभु मेरे तुम कब आओगे, विरह ने खूब रुलाया है!

जीवन में अनवरत प्रेम को, मैंने तुम पर ही लुटाया है।।


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