शीर्षक: वीरानियां दिल की
शीर्षक: वीरानियां दिल की
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
एक अरसा हुआ खुद से बात किए हुए,
ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब सुहाने हुए,
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
बड़ी तकलीफ में गुज़र रहे हैं ये दिन,
ना साथी मिला ना राहें पूरी हुई,
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
आलम यह है कि सितम रुकते नहीं,
ना दर्द मानते हैं ना जख्म भरते हैं,
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
तबस्सुम से खुशबू की महक ना मिली,
ना प्यास बुझी ना गागर ही भरा,
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
आहें भरते साँसों ने ली है करवट,
ना गलियाँ मिलीं ना गलियारे नसीब हुए,
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
बड़ी इज्जत से बदनाम हुए हैं साहिब,
ना हलचल हुई ना जुस्तजू शामिल हुई,
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
तरन्नुम सा हृदय सुबकता रहा एक कोने में,
ना यादें रही ना फँसाने ही रहे,
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
दम घुटती तन्हाइयों में ना सावन आया,
ना पतझड़ थमी ना बहार आई,
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
मीरा ने भी जहाँ ज़हर पीकर बतलाया,
ना स्मृति उनसे हुई ना खुदा की रहमतगरी,
ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?
ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।
