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Gyaneshwari Vyas

Tragedy

4  

Gyaneshwari Vyas

Tragedy

शीर्षक: वीरानियां दिल की

शीर्षक: वीरानियां दिल की

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ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


एक अरसा हुआ खुद से बात किए हुए,

ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब सुहाने हुए,

ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


बड़ी तकलीफ में गुज़र रहे हैं ये दिन,

ना साथी मिला ना राहें पूरी हुई,

ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


आलम यह है कि सितम रुकते नहीं,

ना दर्द मानते हैं ना जख्म भरते हैं,

ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


तबस्सुम से खुशबू की महक ना मिली,

ना प्यास बुझी ना गागर ही भरा,

ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


आहें भरते साँसों ने ली है करवट,

ना गलियाँ मिलीं ना गलियारे नसीब हुए,

ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


बड़ी इज्जत से बदनाम हुए हैं साहिब,

ना हलचल हुई ना जुस्तजू शामिल हुई,

ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


तरन्नुम सा हृदय सुबकता रहा एक कोने में,

ना यादें रही ना फँसाने ही रहे,

ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


दम घुटती तन्हाइयों में ना सावन आया,

ना पतझड़ थमी ना बहार आई,

ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


मीरा ने भी जहाँ ज़हर पीकर बतलाया,

ना स्मृति उनसे हुई ना खुदा की रहमतगरी,

ऐ दिल! किस-किस से कहूँ ये वीरानियाँ?

ना कोई सुनने को है ना सुनाने को।।


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