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Gyaneshwari Vyas

Abstract

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Gyaneshwari Vyas

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शीर्षक: अटूट बंधन

शीर्षक: अटूट बंधन

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प्यार का वह अनकहा हाथ,

जिसने मुझे किया था सनाथ,

जिनसे मेरी दुनिया की आबाद,

वह और कोई नहीं मेरे पापा थे।


जिनसे दुनिया थी सुरक्षित,

प्रेम बगिया भी थी सिंचित,

जिनसे ज़िंदगी थी अभिलाषित,

वह और कोई नहीं मेरे पापा थे।


जो सागर में थे कश्ती,

जिनसे उजागर थी हस्ती,

जिनसे घनी थी मेरी बस्ती,

वह और कोई नहीं मेरे पापा थे।


लम्हे मुठ्ठी में थे बेहिसाब,

पाईं थीं खुशियाँ लाजवाब,

जिनका जज्बा था आफताब,

वह और कोई नहीं मेरे पापा थे।


ख्वाब भी जिनके बिन हैं अधूरे,

जिनको कभी ना कर सकेंगे पूरे,

जिनसे प्रेरणा मिलती थी दिन-रात,

वह और कोई नहीं मेरे पापा थे।


अब भी जिनके दम से चलतीं साँसे,

जिनके एहसास ही हैं ख़ासे,

जिनके बंधन के कभी न हुए हिस्से,

वह और कोई नहीं मेरे पापा थे।

.....मेरे पापा थे।।



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