STORYMIRROR

आईना

आईना

1 min
9.1K


आईने लगा दो शहर के हर गली नुक्कड़ पर,

शरीफों के भेष में गुनाहगार फिरते हैं।


नकाब उतारकर बेनकाब करो मक्कारों को,

जुर्म छुपाने वहशियाना हरकत जो करते हैं।


जागते रहो हाथों में मशालें लेकर,

सितमगर बनकर सितम जो करते हैं।


बुनियाद तो उनकी हिलके रहेगी,

रिश्तों में जिनके दरार है।


कीचड़ से भरी हो अक्ल जिनकी,

समझाना उनको बेकार है।


जो खोपते हैं खंज़र पीठ पीछे,

उम्मीद उनसे करना कुदरत से गद्दारी है।


अंधा कर दो उन काफिर आँखों को,

हक पर हमारे बुरी नजर जो डालते हैं।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama