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Upama Darshan

Drama

5.0  

Upama Darshan

Drama

आधुनिक नारी

आधुनिक नारी

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सदियों से रहीं वर्जनाएं तुम पर

तोड़ दी तुमने आज वे सारी

स्वच्छन्द जीवन जीने की इच्छा

बरसों से है रही तुम्हारी।


विधवा के सुहाग चिह्न छिनने पर

समाज से थी तुम्हें आपत्ति भारी

सुहागिन बन तुम उन चिन्हों को

त्याग रही हो खुद ही नारी।


शिशु के जन्म को तुमने माना

अपनी स्वतन्त्रता में बंधन

मद्यपान धूम्रपान अपना कर

किया स्वतन्त्र जीवन यापन।


पुरुष ने तुम्हारे नव स्वरूप को

समय के साथ स्वीकार किया

नारी पुरुष का भेद मिटा कर

हर क्षेत्र में अंगीकार किया।


माँ के जिस महान‌ रूप की

यशगाथा हैं सब गाते

उस माँ की‌ पहचान खो गई

नव पीढ़ी के आते-आते।


फिर क्यों समाज से है अपेक्षा

स्त्रियों हेतु अलग नियमों की

इस दोहरी मानसिकता से

तुम लाभान्वित कैसे होगी।


प्रेम समर्पण निष्ठा के

अर्थ हुए आज बेमानी

स्वार्थ और महत्त्वाकांक्षा से

समाज को होनी है हानि।।


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