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आधिशक्ति

आधिशक्ति

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आधिशक्ति तुम से ही भक्ति,

कण-कण में है तुम हो समाई,

विभिन्न स्वरुपों वाली हे माँ,

अब नवरात्रों की शुभ घड़ी है आई।


घर-घर तुम्हारा बसेरा होगा,

रोशन होगा ये जग अब फिर से,

दूर बुराइयों का वो घना अंधेरा होगा,

मन मे सच्चाई का सवेरा होगा।


माँ इस बार जब तुम पधारोगी,

आशा करता हूँ कि दूर लोगों,

की दूषित मानसिकता वाली,

बिमारी होगी।


नारी उत्थान की हमेशा बात होती है,

आज भी स्त्री सिसकती और रोती है,

उम्मीद और आशा को हमेशा संजोती है,

अरे भाई वो भी तो देवी का स्वरुप होती है।


माँ सरस्वती इस बार थोड़ा तो ज्ञान देके जाना,

तुम्हारा जो अंश है धरती पर उसके लिए मन,

में सम्मान का भाव पैदा कर जाना,

माता लक्ष्मी घर की लक्ष्मी की कद्र करूँ।


ये वरदान देके जाना...हे माँ,

मन में स्त्री के लिए सम्मान देके जाना,

इस बरस मेरे आँगन में जरूर है आना,

आत्मा पे जो छाया है अंधकार उसे मिटाना।


मोह माया लालच और ईर्ष्या जैसे दुखों से बचाना,

मेरी झोपड़ी में धर के चरण अपने उस को स्वर्ग बनाना,

आने से तुम्हारे इस जहाँ में भक्ति की खुशबू होगी,

हवाओं में भी भजन कीर्तन के संगीत की धुन होगी।


चरणों में तुम्हारे नतमस्तक हो जाऊँगा,

भक्ति भाव से परिपूर्ण हो जाऊँगा।


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