हमारी संस्कृति
हमारी संस्कृति
"माँ माँ पड़ोस में कोई रहने आये हैं ।"
"कौन हैं बेटा "
"कोई विदेशी दम्पति हैं ,पर यहाँ हमारे गांव में भला क्यों रहने आये हैं ।"
"चल बेटा वहीं चलकर देखें ,नए लोग हैं ,कुछ हाल चाल भी पूछ आएं ।"
जानकी ने अपने बेटे पार्थ से कहा ।
दोनों गए ,बगल में घर नही रेस्ट हाउस हैं ,वहाँ अक्सर कोई न कोई आता रहता है ।
दरअसल जानकी का गांव सिरपुर है ही इतना सुंदर ,चारों ओर प्राकृतिक छटाओं से भरपूर ,छत्तीसगढ़ की एक छोटी सी जगह , प्राचीन अवशेष मंदिर और मूर्तियां ,भले ही खुदाई में निकली कुछ भंग सी पर हैं अनुपम ,लगता है मानो कुछ बोल पड़ेंगी ।अक्सर छुट्टियों में देश विदेश से लोग यहाँ आते हैं ।
आज भी कोई विदेशी दम्पत्ति आये हैं ,जानकी अपने बेटे के साथ पहुंची मिलने ,उसने सोचा ये ठहरे अंग्रेज हिंदी भाषा जानेंगे कि नही ।
सामने ही कुर्सियों में बैठे वे लोग चाय का आनन्द उठा रहे थे ,जानकी और उसके बेटे ने हाथ जोड़कर उनसे नमस्ते की तो उन लोगों ने भी "नमस्ते "कहकर हाथ जोड़ा ।
बड़ा अचरज हुआ दोनों को ।
"मैडम मैं जानकी ये मेरा बेटा पार्थ ।"
"जानकी तुम राम की पत्नी " विदेशी महिला ने कहा ।
"नही मैडम वो तो भगवान राम की पत्नी थी मैं तो बस एक आम इंसान ।"
"ओह्ह "
"आप हिंदी जानते हो "अबकी पार्थ बोला ।
"हाँ जी हम थोड़ी थोड़ी हिंदी जानते हैं ,यहाँ के बारे में जानकारी लेने आये हैं ,आप लोग हमको घुमाओगे और सब जानकारी दोगे ।"
"हाँ सर जी ,मैडम जी क्यों नहीं "
"कुछ पैसा भी लोगे "
"बिल्कुल नहीं साहेब ,ये हमारी सभ्यता नहीं , हमारी संस्कृति नहीं सिखाती हमे ये सब ।आप लोग चलें हम आपको घुमाते हैं "
दिन भर का समय देकर माँ बेटे ने उन्हें घुमाया उसके बाद अपने घर की रोटी और पालक आलू का साग खिलाया ,विदेशी दम्पति बेहद खुश थे ,उन्हें खाना भी बहुत पसंद आया ।
उन्होंने जमकर तारीफ की दोनों की और वीडियो भी बनाया की अपने देश में अपने दोस्तों को दिखाएंगे ।
वे लोग एक टीवी चेनल के लोग थे छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों की शूटिंग के लिए आये थे ,उन्होंने जाते जाते कहा "हमे यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा यहां के लोग बहुत प्यारे हैं ,जानकी और उसका बेटा पार्थ तो हमारे दोस्त बन गए हैं , कैसे सबको अपना बना लेते हैं ये लोग ।"
तब जानकी ने कहा"यही हमारे देश की और हमारे लोगो की तारीफ है धर्म जाति रंगभेद से अलग हम सबको अपने मन मे जगह देते हैं अतिथि का सत्कार हमारा धर्म है ।"
सच ही कहा जानकी ने हम हिन्द के निवासी सभी जन एक हैं ,भाषा चाहे अलग हो पर मन सबके नेक हैं ।
क्या यही वसुधैव कुटुम्बकम नही है ,जो हमारी संस्कृति का रूप ले चुकी है ।