फैसला
फैसला
दो दिन ही हुआ निशांत की मौत को घर मे मातम पसरा हुआ था ,और अब बड़ी बुआ ने ऐलान कर दिया
"दीप्ति से कह दो , अब ये ताम झाम , रंगीन चूड़ियाँ, कपड़े सब आलमारी में बंद कर दे और सफेद वस्त्रों में अपने आप को ढक कर रखे । विधवा है अब वह । "दीप्ति पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ा अभी कल तक जिसकी चूड़ियों और पायल की छनक से पूरा घर गुंजायमान था आज निशांत के जाते ही मानो कहर टूट पड़ा उस पर ।
रो रो कर वैसे ही उसका बुरा हाल था ,तभी उसकी सास आनंदी ने उसके सर पर हाथ रखा ,उसने सर उठा कर देखा वो ममतामयी नज़रें उसे सांत्वना देती दिखीं ।
"जीजी ,मेरी बहू सफेद कपड़े नही पहनेगी ।"
"ये क्या कह रही हो आनंदी तुम , कुछ होश है तुम्हें कि बेटे
को खोने के बाद होश भी गवां बैठी हो , लोग क्या कहेंगे ।"
"नही जीजी मैं पूरे होश में हूँ, बेटे को तो मैं गवां चुकी हूँ पर बहू के साथ मैं ये अन्याय नही होने दूँगी ।"
"ये समाज के रीति रिवाज हैं जो हमें निभाने होंगे ।"
"नहीं जीजी इन रिवाजों को यदि मैंने अपनाया तो मेरी बहू भी जिंदा लाश ही होगी ,और मेरे बेटे की आत्मा को दुख भी होगा, जो मैं नहीं चाहती ।उसने किसी का क्या बिगाड़ा है जो उसे ये सज़ा मिले ,पति के जाने का दुख क्या कम है उसके लिए जो हम अब और नई सज़ा दें उसे, माफ करें जीजी अब हमारे जीने का सहारा यही है",और हमारी खुशियां भी सास आनन्दी ने अपना फैसला सुनाते हुए दीप्ति कोअपने गले से लगा लिया ।