दकियानूसी विचारों से आज़ादी
दकियानूसी विचारों से आज़ादी
"बहू तुम साड़ी पहनना , सूट मत पहनना तुमसे सब मिलने आएंगे तो अच्छा नहीं लगेगा " सास मंजरी ने अपनी नई नवेली बहू पाखी से कहा ।
"हाँ मम्मीजी मैं साड़ी ही पहनूँगी "पाखी ने कहा ।
पाखी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है मुम्बई की एक कम्पनी में उसका और शारव का अभी विवाह हुआ है दोनों एक ही कंपनी में काम करते हैं ,प्यार हुआ तो दोनो ने अपने परिवार वालों को मिलाया और दोनों का विवाह हो गया । पाखी और शारव खुले विचारों के हैं पर शारव की माँ मंजरी पुराने विचारों की ।
शादी के दो दिन बाद पाखी को सुबह उठने में थोड़ी देर क्या हुई उनका मुँह बन गया हड़बड़ी में पाखी अपने कमरे से ऐसे ही निकल आई "अरे तुमने बिंदी क्यों नही लगाई ,ये तो सुहाग की निशानी है "
"नहाते गिर गई होगी मम्मीजी ,अभी लगा आती हूँ " मन ही मन तो उसे हँसी भी आई अब भला बिंदी से क्या लेना देना सुहाग का ।पढ़ी लिखी लड़कियां वैसे भी इन सब बातों को ज्यादा तूल नही देतीं ।
पूजा ,व्रत और लगातार चलने वाले बहुत से कार्यक्रमों से अब वह घबराने लगी " शारव तुम्हारे घर के लगातार चलने वाले ये उपालम्भ कभी खत्म होंगे कि नहीं मैं तो अब घबरा रही हूँ इनसे ,रोज रोज व्रत ,उपवास मेरे बस की बात नहीं! "
"जल्दी खत्म हो जाएंगे ये डियर "शारव उसे दिलासा देता फिर ये भी कहता "मुझे भी नहीं पता कि इतने ज्यादा व्रत पूजा करवाएंगी मेरी मम्मी तुमसे ।"
पापा भी समझाते "शारव की माँ ,बहुत हो गया तुम्हारा नाटक अब बच्चों को कुछ अपनी मर्जी से जीने ,खाने दोगी या नहीं ,तुम तो हाथ धोकर इनके पीछे ही पड़ गई हो ,मैने तो कभी नहीं किये इतने व्रत "
"अजी मैं ये सब अपने बेटे के लिए कर रही हूँ वह खुश रहे ,लंबी उम्र जिये इसीलिए ,इसमें बुराई क्या है "
"क्यों बहू ,तुम्हें क्या अपने पति की लंबी उम्र नही चाहिए! "
और पाखी उनकी इन बेबुनियाद बातों को सुन कभी अपने पति को देखती कभी अपने ससुर का मुंह ताकती ।अब उसकी समझ मे आ रहा था कि शारव ने उसे बताया नही की उसकी माँ एक अंधविश्वासी महिला हैं जो मॉडर्न होने का ढोंग क़रतीं थी पर हैं पूरी तरह दकियानूसी ,उसका दिमाग शारव पर खराब हो गया ।
"तुमने बताया नहीं कि माँ तुम्हारी इतनी दकियानूसी महिला हैं , दिन भर भूखा रख व्रत करवाती हैं ऊपर से पति की लंबी उम्र का वास्ता देती हैं , कभी कुछ और कभी कुछ ,ऐसे में इंसान तो पागल ही हो जाये ।"
"मत ध्यान दिया करो तुम कमरे में लाकर खाना खा लिया करो तुम "शारव ने हंस कर कहा ।
"तुम हंस रहे हो मेरी हालत देख कर " पाखी को रोना आ गया ।
" अरे तुम ध्यान मत दो उन पर " उसने फिर कहा ।
पाखी बोली "अब मुझे ही कुछ करना होगा "
अगले दिन शारव ने कहा "पापा हम लोग कुछ दिन के लिए बाहर घूमने जा रहे हैं "
पापा बोले "हाँ ,बेटा ये ठीक रहेगा "
तभी कमरे में आते मां बोली "कहीं नही जा रहे तुम दोनों ,कल एक पंडित आने वाले हैं उनका आशीर्वाद लेना है तुम दोनों को "
सुनकर दोनों के चेहरे उतर गए।
अगले दिन पंडित जी आये , बाल ब्रह्मचारी थे वे , माँ ने दोनों को बुलाया ,पाखी को उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने कहा माँ ने पर उनका चेहरा देख पाखी का मन न हुआ चरणस्पर्श करने का दूर से ही प्रणाम कर लिया उसने और अपने कमरे में चली गई ।
माँ के बहुत बुलाने पर भी वह न आई । पंडित जी के जाने के बाद माँ का भाषण चालू था
"आजकल की लड़कियां क्या जाने ,संस्कार और घर के रीति रिवाज और भी न जाने क्या कुछ... लेकिन जब उन्होंने कहा "न जाने इसके मां बाप ने क्या सिखाया है तब पाखी से रह न गया और बाहर आकर वह विनम्रता पूर्वक बोली " मम्मीजी इसमें मेरे माता पिता कहा से आ गए आपको जो बोलना है मुझे बोलिये पर उन्हें नहीं, उन्होंने मुझे हर प्रकार की शिक्षा दी है पर अंधविश्वास और दकियानूसी संस्कार नहीं जिससे किसी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचे , आज जमाना कहाँ पहुंच गया है और आप आगे नहीं बढ़ पाई आपने जो जो कहा मैंने किया पर किसी पाखंडी के चरणों का स्पर्श मैं नहीं कर सकती उस पंडित की नज़रों में वासना साफ नजर आ रही थी मुझे पर आप नहीं देख पाई।आप दकियानूसी विचारों से आज़ाद होइए अब ताकि सभी आज़ाद हो सकें , पूजा पाठ ,व्रत बुरी बात नहीं पर उसे गलत बातों से कृपया न जोड़े किसी की भावनाएं इससे आहत हो सकती हैं ,आप समझिए मम्मीजी ।"
"पाखी की बात सुन उसके ससुर और शारव ने भी उसकी हां में हां मिलाई पहले तो माँ को बुरा लगा पर सबके समझने पर ठंडे दिमाग से सोचने पर लगा वह गलत थीं आज वह भी भी दकियानूसी विचारों से आज़ादी पा चुकी हैं ,और सब खुश हैं ।