घर पर मेरे नाम की नेमप्लेट नही
घर पर मेरे नाम की नेमप्लेट नही
"कहते हैं मकान को घर, उसमें रहने वाली औरतें बनाती हैं ।वो चाहें तो उसे संवार दें या बिखर जाने दें, औरतों का प्रेम स्नेह और व्यवहार घर के लोगों को आपस में बांधे रखता है ।क्यों नीरू मैंने ठीक कहा न?" अभि ने नीरू की ओर मुखातिब होकर कहा ।
"हुं ठीक तो कह रहे हो" नीरू बोली ।
"भाभी इसकी बातों पर मत जाना ये कहता कुछ है और करता कुछ है" अभि के दोस्त गौतम ने नीरू से कहा ।आज अभि ने अपने दोस्तों गौतम, दिनेश और अशोक ने अपने नए फ्लैट लेने की खुशी में खाने पर बुलाया था ।रविवार का दिन था नीरू आराम से सब काम कर रही थी तभी अचानक अभि ने नीरू से कहा "आज मैंने अपने दोस्तों को लंच पर बुलाया है तुम कुछ अच्छा बना लेना ।"
"ये बात तुम मुझे कल भी बता सकते थे" नीरू नाराज होकर बोली ।
"तो क्या हुआ, अभी तो बहुत समय है बना लो फटाफट खाना ।"
तुम्हारी यह आदत मुझे पसन्द नहीं, किसी को घर खाने पर बुलाओगे तो कुछ इंतज़ाम भी तो करना पड़ेगा, अब अचानक इतनी जल्दी में क्या बनाऊँ " नीरू को बहुत गुस्सा आ रहा था .....गुस्से का कारण दोस्तो को खाने पर बुलाना नही अपितु पहले से उसे न बताना ।
हमेशा से अभि की आदत ऐसी ही है पर ऐसे में उसे कितनी परेशानी होती है इसका अभि को अंदाजा नहीं है ।पहले से बताया होता तो चने भिगो देती रात में छोले भटूरे बन जाते पर अब हड़बड़ी में क्या करूँ, चाय पीकर सबसे पहले उसने कुकर में आलू उबलने रख दिये ।पूरी का आटा लगा दिया कचोरी के लिए मैदा में मोयन डाल कर गूंथ कर रख दिया ।चलो कुछ तो तैयारी हुई ।
तब तक काम वाली भी आ गई, उसने उसे पहले बर्तन धोने कह दिया ।तब तक खुद सब्जी काटने लग गई ।वैसे भी उसका हाथ तेज चलता है तो उसे इन सब से कोई फर्क नही पड़ता ।
इतना काम निबटाकर वह बाथरूम में नहाने घुस गई ।नहाकर निकली तो देखा अभि अब तक पैर फैलाये पेपर में सर घुसा कर ही बैठा
था ।
"मुझे काम में फंसा खुद आराम से बैठे हैं जनाब, वह कुढ़ कर रह गई ।साढ़े 12 बजे तक उसने आलू मटर की सब्जी, टमाटर की चटनी खीर, पुलाव सब बना कर रख दिया अब जब सब खाने बैठेंगे तब गर्मागर्म पूरी कचोरी तल दूंगी ।"उसनेअभि अब तक बैठा ही था उसे नहाने के लिए धकेला ।
निश्चित समय पर सब दोस्त आये उसने अपना गुस्सा भूल खुशी खुशी सबको परोसा, सभी ने जी भरकर तारीफ की उसकी पर अभि के चेहरे पर प्रशंसा के कोई भाव न थे ।
पर खाने के टेबल पर पूरे समय अभि अपनी प्रशंसा में चूर था मैंने यह करवाया, वह करवाया ।बंगलोर आने के बाद दोनों ही अच्छी कंपनी में जॉब कर रहे थे इन्फेक्ट दोनों की सेविंग्स से ही फ्लैट खरीदा गया था पर अभि ने इसका एक बार भी जिक्र तक नही किया ।
अभि के अहम को देखकर नीरू को बहुत खराब लग रहा था यह बात उन के दोस्तों को भी खल रही थी मेरा फ्लैट.. मेरा फ्लैट.... मैने लिया... मैंने यह किया ...मैंने वह किया ..सुन सुनकर नीरू पक गई थी ।
खाने के बाद जब दोस्त चले गए तो नीरू बोली " अभि ये फ्लैट हम दोनों ने मिलकर लिया है तुम्हें अहसास है ना इसका " तो क्या हुआ मालिक मैं हूं इसका, तुम बीवी हो मेरी ।ये मेरा घर है "अभि की बात सुनकर नीरू को लगा इसे चढ़ गई है पीने के बाद, दोस्तों के साथ उसने कोई सॉफ्ट ड्रिंक ली थी ।
"तुम्हें क्या हो गया है, नशा कर लिया है क्या "नीरू बोली ।कुछ भी बोले जा रहे हो, घर हम दोनों का ही है और हम दोनों को ही रहना है इसमें ।"
"हाँ मैं समझ रहा हूं पर नाम पति का ही होता है, हर चीज में, इसीलिए कह रहा हूं कुछ गलत कह दिया क्या मैंने "
नीरू की आंखों में आंसू छलक आये ।घर औरतों से बनता है पर नाम पतियों का, जिस घर को मुझे सजाना, संवारना है जीवन भर ....उसमें मेरे नाम की नेमप्लेट तक नहीं ये कैसे विचार हैं पुरुषों के और कैसी मानसिकता है इनकी ।