अनुमान
अनुमान
घर का सारा काम निबटा कर बालकनी में आकर बैठ गई नीरजा , हल्की धूप थी यहाँ ।ठंड में धूप सेंकने का मजा ही कुछ और है सोचा और घर की कामवाली बीना को आवाज देकर कहा "बीना जरा एक कप चाय पिला दे तो , सुबह से तो काम के कारण चाय पी ही नहीं पाती ढंग से , अब जरा इत्मीनान से बैठ कर धूप तापते हुए चाय का लुत्फ तो उठा लूँ । "
"अभी बनाकर ले आती हूँ दीदी " कह कर बीना चाय बनाने चली गई ।
नीरजा की नज़र सामने ट्रक से उतरते सामान पर चली गई , लगता है पड़ोस में कोई रहने आये हैं , जिनका सामान उतर रहा है , कुछ देर वह देखती रही काफी दिनों से यह मकान खाली पड़ा है चलो अब कोई रहने आएगा तो अच्छा लगेगा ।
"दीदी चाय ले लो , कोई मैडम रहने आ रही हैं आपके पड़ोस में ,अब आपको उनका साथ मिलेगा तो अच्छा लगेगा , आपकी सहेली रीता तो चली गईं ट्रांसफर हुआ तो उनकी जगह अब ये लोग आए हैं रहने " वीना ने उसकी सोच को विराम देते हुए कहा ।
"हुंह मुझे क्या , कोई भी आये रहने , वैसे भी मेरे पास समय ही कहाँ है अपने घर के काम धाम से ।"कहती हुई नीरजा ने चाय के प्याले से मुँह लगा दिया पर मन में निरन्तर चल रहा था कौन आ रहे हैं , कैसे लोग होंगे उसके पड़ोसी ।
अगले दिन सुबह देखा जीन्स और टॉप में कसी हुई देह की मालकिन उसकी पड़ोसन बीना से बात कर रही थी , खूब स्मार्ट , उम्र अड़तालीस के करीब होगी क्योंकि बालों में हल्की चांदी सी आ गई थी ,कटे हुए बालों में बला की खूबसूरत लग रही थी , उसका ध्यान खुद पर गया वह स्वयं पैंतीस की पर काम का बोझ और बच्चों की जवाबदारी में खुद का ख्याल रखना तक भूल सी जाती है ।
बीना से पूछा "क्या बात कर रही थी वह तुझसे , काम के लिए पूछ रही थी क्या "
"नहीं दीदी , वह तो कह रही थी घर के सारे काम खुद ही कर लेती हैं , पास में कोई बगीचा है क्या पूछ रही थीं , सुबह टहलने जाने के लिए "
नीरजा चकित थी तभी इतनी फिट है ,खैर मुझे क्या "कंधे झटक वह अपने कामों में व्यस्त हो गई ।
रात को पति दिनेश से बताया पड़ोसन के बारे में तो उन्होंने नीरजा को झिड़कते हुए कहा "देखो उन्हें और एक तुम हो जो घर में घुसी रहती हो , सीखो जरा उनसे कुछ "
....हुंह , मुझे क्या ... मैं जैसी हूँ ठीक हूँ "
मन में पड़ोसन के प्रति कुछ ईर्ष्या की भावना पनपने लगी थी क्यूँ ये वह खुद भी न जान पा रही थी , उसकी स्मार्टनेस से या और कुछ .. बालों में सफेदी आ गई और पहनावा तो देखो उसका ... हर चीज उम्र के साथ अच्छी लगती है ...मन तरह तरह के विचारों से आंदोलित था
आज बाजार से सब्जी लेने गई नीरजा तो पता नहीं क्यों मन हुआ पड़ोसन से परिचय बढ़ाया जाए कदम स्वयं ही बढ़ चले उसके घर की ओर ।अंदर से आ रही आवाज ने उसका मन झकझोर कर रख दिया किसी बुजुर्ग महिला की आवाज थी " बेटी मीरा तुम्हारी सेवा के कारण आज हम जीवित हैं वरना मैं और तुम्हारे पापाजी तो कब के ये दुनिया छोड़ देते राजेश के जाने के दुख ने तो हमें तोड़ कर रख दिया तुमने हमारा हौसला बढ़ाया हमारी इतनी सेवा करती हो हमारी खुद की बेटी होती तो शायद वह भी नहीं कर पाती इतना , जितना तुमने किया है "
अचानक पड़ोसन की नज़र उस पर पड़ी और उसने बहुत प्यार से कहा " आप , यहीं सामने रहती हैं ना ,आइए न अंदर बैठिए " हल्की मुस्कान चेहरे पर लाते हुए उन्होंने कहा ।
नीरजा थोड़ा सकुचा कर बोली " सामने से निकल रही थी तो सोचा आपसे परिचय हो जाये , कहीं कोई चीज की जरूरत हो तो आपको , सामने ही हूँ मैं ।"
"हाँ मैंने देखा एक दो बार बालकनी में आपको और बीना ..वो कामवाली ... से भी पूछा था आपके बारे में ,मेरा नाम प्रतीक्षा है ...यहाँ अभी नई हूँ , ये मेरे सास , ससुर हैं" बुजुर्ग दम्पत्ति की ओर इशारा करती हुई वे बोलीं ।
" मैं कॉलेज में लेक्चरर हूँ पति रहे नहीं ...शादी के एक साल बाद ही एक कार एक्सीडेंट में उनका देहांत हो गया उनके जाने के सदमे में इन लोगों ने भी बिस्तर पकड़ लिया , अब इनकी देखभाल मेरी जिम्मेदारी है ।"
" हाँ बेटी , हमने कहा था कि बेटा हमें हमारे हाल में छोड़ दे और तू फिर से अपना जीवन बसा ले पर इसने हमारी बात मानी नहीं बस अपनी जिद में रही आप लोगों की देखभाल कौन करेगा अब मैं ही आपकी बेटी हूँ तो मेरा ही दायित्व है आपकी देखभाल करना "
उन बुजुर्ग महिला ने कहा ।
"माँ आप छोड़ो इन बातों को , आप क्या लेंगी चाय या कॉफी " पड़ोसन ने मुस्कुराते हुए कहा ।
"जी फिर कभी " बोली नीरजा "आज मैं कुछ जल्दी में हूँ आप आइए घर ,अभी मैं चलती हूँ ।"
काफी रोकने के बाद वह नहीं रुकी , उसका मन अपनी पड़ोसन के प्रति श्रद्धा से भर उठा और स्वयं के प्रति आक्रोश उसने क्या क्या अनुमान लगा लिया था उसके परिवेश को देख कर ।