नई सुबह
नई सुबह
"माँ मैं ऑफिस जा रही हूँ " आकांक्षा ने माँ को आवाज दी।
"अरे बेटा अक्की क्यों, तू नही जानती ये दुनिया वाले सब क्या क्या बोल रहे हैं तेरे बारे में। " माँ ने कहा।
"माँ, मुझे सब पता है, लोगों को बस मसाला चाहिए, उनके बोलने से क्या हमारा घर चल जाएगा।"
"बेटा किसी का मुँह हम नही पकड़ सकते।"
"माँ मेरे हिस्से की सजा मैं काट चुकी हूँ, इतने दिन घर में रहकर, लोगों की तरह- तरह बातों को झेलकर, अब उन दुनिया वालों की परवाह मैं क्यों करूँ, जब मेरा बलात्कार हुआ तब कहाँ थे ये लोग, उन्हें तो सजा मिली नहीं पर अपने हिस्से की सजा मैं काट चुकी हूँ।"
"बेटा क्या बोल रही तू " माँ ने कहा।
ठीक कह रही हूँ मैं माँ, मैं जान चुकी हूँ कि कोई मदद करने नहीं आएगा, पापा के न रहने पर इस घर को चलाने की जवाबदारी मेरी है, मैं तुम्हें और अपने छोटे भाई आशु को कब तक खाली पेट देखूं, मैंने एक कंपनी में बात कर ली है, वहाँ एक महिला अधिकारी ने मुझे आज से जॉब के लिए बुलाया है "
"पर अक्की बेटा "
"तुम चिंता मत करो माँ, कुछ दिन में हम ये जगह भी बदल देंगे, तुम्हारी बेटी के लिए एक नई सुबह इंतजार कर रही है उसे मत रोको।"